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केंद्र सरकार का Caste census फैसला, क्या है पूरा मामला

Caste Census का नया अध्याय: सामाजिक न्याय की दिशा में कदम या राजनीतिक चाल

केंद्र सरकार ने हाल ही में Caste census कराने का ऐलान किया है। यह फैसला सभी को चौंकाने वाला रहा क्योंकि बीजेपी लंबे समय से इस मुद्दे पर चुप्पी साधे थी और जातिवाद को समाज में विभाजनकारी मानती रही थी। लेकिन अब सरकार ने अपनी रणनीति बदलते हुए जनगणना में जाति का कॉलम जोड़ने का फैसला किया है। इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जैसे बिहार में होने वाले चुनाव, महिला आरक्षण लागू करने की तैयारी, मुस्लिम समाज में पिछड़े वर्गों की पहचान और विपक्ष के हाथ से मुद्दा छीनना।‎

‎राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रिया

‎सरकार के इस फैसले के बाद राजनीति में घमासान मच गया है। कांग्रेस ने तुरंत इसका श्रेय लेने की कोशिश की और कहा कि राहुल गांधी के लगातार दबाव के कारण ही बीजेपी को यह कदम उठाना पड़ा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने भी इसे कांग्रेस की जीत बताया। वहीं, बीजेपी समर्थक इसे मास्टरस्ट्रोक बता रहे हैं और कह रहे हैं कि इससे विपक्ष का मुख्य चुनावी मुद्दा कमजोर हो गया है।‎

Caste census में क्या-क्या बदलेगा?

‎इस बार की जनगणना में सभी धर्मों के लोगों से उनकी जाति पूछी जाएगी। मुसलमानों में भी पसमांदा यानी पिछड़ी जातियों की गिनती होगी। सरकार चाहती है कि यह काम पूरी पारदर्शिता से हो। पिछली बार कई लोगों ने जाति का कॉलम खाली छोड़ दिया था, इस बार उनके लिए भी व्यवस्था की जाएगी। आंकड़े इकट्ठा करने के बाद उनका विश्लेषण होगा और फिर रिपोर्ट बनेगी, जिसमें पहली बार विस्तार से जातिवार आंकड़े सामने आएंगे।‎

‎सामाजिक और राजनीतिक असर

Caste census के कई असर होंगे। इससे ओबीसी, एससी, एसटी और सवर्ण सभी वर्गों की असली आबादी और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति सामने आएगी। इससे आरक्षण की पारदर्शिता बढ़ेगी और नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। लेकिन इसके साथ ही जातिवाद और सामाजिक विभाजन का खतरा भी बढ़ सकता है। कई जातियां अपनी संख्या के आधार पर ज्यादा आरक्षण और राजनीतिक हिस्सेदारी मांग सकती हैं। इससे नए राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं और क्षेत्रीय पार्टियों को भी मजबूती मिल सकती है।

आरक्षण और सुप्रीम कोर्ट की सीमा

‎अगर जनगणना में ओबीसी या अन्य वर्गों की संख्या ज्यादा निकलती है तो आरक्षण बढ़ाने की मांग उठ सकती है। अभी सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण है। सरकार कह रही है कि जरूरत पड़ी तो सीटें बढ़ाकर आरक्षण की सीमा बढ़ाई जा सकती है, लेकिन 50% की सीमा को पार करने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की वजह से अभी कोई विचार नहीं है।‎

‎आगे क्या होगा?

‎जनगणना के आंकड़े आने में एक-दो साल लग सकते हैं। उसके बाद ही असली तस्वीर सामने आएगी। तब तक राजनीतिक बहस जारी रहेगी कि यह फैसला किसके पक्ष में जाएगा। एक तरफ सामाजिक न्याय की उम्मीदें हैं तो दूसरी तरफ जातिवाद बढ़ने का डर भी है। सरकार ने यह फैसला कई राजनीतिक और सामाजिक कारणों से लिया है, लेकिन इसका असली असर आने वाले समय में देखा जा सकता हैं ।

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Sabeela Siddiquie

Sabeela Siddiquie is a news and content writer passionate about uncovering stories that matter. Known for a keen eye for detail and a commitment to truth. Sabeela delivers insightful and thought-provoking content with valuable information. Her work centers on politics and other important subjects.

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