पहली गूंज: Nishikant Dubey का सुप्रीम कोर्ट पर सीधा हमला

Nishikant Dubey ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं, लेकिन इस बार कारण कुछ ज्यादा ही गंभीर है। 19 अप्रैल 2025 को एक सार्वजनिक बयान में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर ऐसा आरोप मढ़ा, जिससे न सिर्फ न्यायपालिका बल्कि पूरा लोकतंत्र हिल गया। उन्होंने कहा कि, “देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए अगर कोई जिम्मेदार है, तो वो सुप्रीम कोर्ट है।”
अब सवाल यह उठता है — यह सिर्फ एक बयान है या आने वाले समय का संकेत?
कानून बनाओ या कोर्ट चलाओ? संसद और न्यायपालिका की टकराहट
Nishikant Dubey का अगला वाक्य और भी अधिक चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “अगर कानून बनाना सुप्रीम कोर्ट को ही है, तो फिर संसद और विधानसभा को बंद कर देना चाहिए।”
यह बात उन्होंने वक्फ (संशोधन) अधिनियम और बंगाल हिंसा जैसे मामलों में अदालत की सक्रियता पर प्रतिक्रिया देते हुए कही थी। यानि बात केवल गुस्से की नहीं, एक गंभीर वैचारिक मतभेद की है।
सुप्रीम कोर्ट का जवाब: संविधान का संतुलन जरूरी
21 अप्रैल 2025 को जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट की बेंच जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के समक्ष पहुंचा, तो अदालत ने भी स्थिति स्पष्ट कर दी।
अदालत ने कहा, “ऐसी याचिकाएं दाखिल करने के लिए कोर्ट की अनुमति की जरूरत नहीं, बस अटॉर्नी जनरल की सहमति चाहिए।” कोर्ट ने इस पर कोई सीधा आदेश तो नहीं दिया, लेकिन एक बात जरूर कही— लोकतंत्र के तीन स्तंभों को एक संतुलन में रहना चाहिए।
राजनीति गरमाई: BJP का दांव-पेंच और विपक्ष का वार
इस बयान से राजनीतिक गलियारों में बवाल मच गया है। BJP नेता दिनेश शर्मा ने Nishikant Dubey के बयान का समर्थन किया, लेकिन बात यहीं नहीं रुकी।
BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने फौरन सफाई देते हुए कहा कि, “यह Dubey जी की निजी राय है। पार्टी इस बयान का समर्थन नहीं करती।”
वहीं कांग्रेस के जयराम रमेश ने जोरदार हमला बोला:
“BJP के मंत्री और सांसद मिलकर सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों पर हमला कर रहे हैं। ये लोकतंत्र की नींव हिलाने जैसा है।”
विपक्ष ने जेपी नड्डा के बयान को “डैमेज कंट्रोल” की चाल बताकर खारिज कर दिया।
अब आगे क्या? संवैधानिक संघर्ष की दिशा
अब यह सारा मामला अटॉर्नी जनरल की मंजूरी पर टिका है। अगर मंजूरी मिलती है, तो आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू हो सकती है।
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट वक्फ एक्ट, तमिलनाडु गवर्नर और अन्य विधेयकों पर केंद्र सरकार से पहले ही जवाब मांग चुका है। ऐसे में Nishikant Dubey का बयान केवल एक विवाद नहीं, बल्कि संवैधानिक संकट को जन्म देने वाला कदम माना जा सकता है।
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